फतवा क्या है, फतवा किसे कहते हैं ?
फतवा शब्द का अर्थ
फतवा का शाब्दिक अर्थ है किसी प्रश्न का उत्तर देना, वो प्रश्न चाहे इस्लामी हो या गैर इस्लामी। एक समय तक फतवा शब्द व्यापक अर्थ में इस्तेमाल किया जाता था लेकिन बाद में फतवा शरिया को जानने के अर्थ में विशेष हो गया।
कुरान और हदीस में फतवा, इफ्ता और इस्तफा जैसे अल्फाज कई मौके पर इस्तेमाल हुए हैं। पवित्र कुरान में, इन शब्दों का उपयोग सूरह यूसुफ की आयत 21, 22, 23 और सूरह नमल आयत में 28 में शब्दों का इस्लामी शरिया के आदेशों को जानने के लिए उपयोग किया गया है।
फतवा क्या है
शरीयत के शब्दों में कहा जाए तो जीवन के किसी भी क्षेत्र से संबंधित मुद्दे में धार्मिक मार्गदर्शन का नाम फतवा है। सामान्य भाषा में कहें तो अगर किसी मुसलमान के सामने कोई कठिन समस्या आ रही है, तो उसके पूछने पर धार्मिक विद्वान कुरान और हदीस और उससे प्राप्त सिद्धांत और व्याख्याएओं के माध्यम से जो जवाब देंगे वो फतवा कहलायेगा।
फतवा किसी विद्वान या मुफ़्ती की जाती राय का नाम नहीं है कि जिस पर अमल करना जरूरी न हो, बल्कि यह कुरान और सुन्नत की व्याख्या का नाम है, जो एक मुसलमान के लिए अनिवार्य और अनुकरण के योग्य है।
फतवे की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) खुद मुफ्ती उस्स-सकलैन थे और सम्मान की स्थिति रखते थे। आप वही के माध्यम से अल्लाह तआला की तरफ से एक फतवा दिया करते थे। आपके फ़तवे (अहादीस) का संग्रह शरीयत को जानने का दूसरा स्त्रोत है। हर मुसलमान को इसका पालन करना आवश्यक है और इससे विचलन की अनुमति नहीं है। आपको हर अध्याय में फतवे द्वारा निर्देशित किया गया है। इबादत, नैतिकता, मानवीय संवेदनाओ, इंसनियत के मामले पथ-प्रदर्शन किया गया है।
मोहम्मद साहब (सल्ल०) के दौर में फतवा
नबी-ए-करीम (सल्ल०) के स्वर्ण युग में उनके अलावा अन्य कोई फतवा देने वाला नहीं था, हालांकि, आप कभी-कभी किसी सहाबी को दूरदराज क्षेत्रों में मुफ़्ती बना कर भेजते तो वो उस ओहदे पर रह कर लोगों की रहनुमाई करते। जैसा कि नबी-ए-करीम ने हज़रत मआज़ बिन जबल को यमन भेजा और उन्हें कुरान और हदीस और कयास और इज्तिहाद के माध्यम से फतवा पारित करने की अनुमति दी।
अहम बात
यहां पर याद रखने योग्य बात ये है कि अगर कोई मुफ़्ती या मुसलमान कोई बात कहता है तो वह फतवा नहीं बल्कि उसकी अपनी राय होती है फतवा तभी दिया जाता है जब कोई व्यक्ति सवाल पूछे और उस संबन्ध में इस्लाम की रहनुमाई चाहे।
हिंदुस्तान में कई बार मुसलमानों को बदनाम करने के लिए कुछ लोग किसी मौलाना या मुफ्ती की कही गई बात या जाती राय को फतवा समझकर तोड़- मरोड़ कर अखबारों में छाप देते हैं जिससे मुसलमानों को काफी दुश्वारियां का सामना करना पड़ता है। इसलिए ध्यान रखें फतवा वही कहलाएगा जिसे किसी सवाल के जवाब में मुफ़्ती या इस्लामी संस्था द्वारा लिखित रूप में क़ुरआन और हदीस की रौशनी में दिया जाए।
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